डायलिसिस क्या है? क्यों जरूरी होती है, कैसे की जाती है और इसके बाद की ज़िंदगी कैसी होती है?
जब इंसानी शरीर में किडनी (गुर्दे) काम करना बंद कर देते हैं या कमजोर हो जाते हैं, तब शरीर से विषैले पदार्थ, अतिरिक्त पानी और अपशिष्ट (toxins) को निकालने के लिए एक वैकल्पिक प्रक्रिया की जरूरत होती है – इसी प्रक्रिया को कहते हैं डायलिसिस (Dialysis)।
📌 डायलिसिस क्या है?
डायलिसिस एक मेडिकल प्रक्रिया है जिसके जरिए शरीर से विषैले अपशिष्ट पदार्थ (जैसे यूरिया), अतिरिक्त नमक और पानी को बाहर निकाला जाता है, जब किडनी खुद ये काम ठीक से नहीं कर पाती।
डायलिसिस एक लाइफ-सेविंग मेडिकल प्रक्रिया है, जो तब उपयोग में लाई जाती है जब किडनी अपने कार्य जैसे –
- रक्त से अपशिष्ट (waste) हटाना
- अतिरिक्त पानी/सोडियम हटाना
- इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस बनाए रखना– करने में अक्षम हो जाती है।
डायलिसिस, कृत्रिम रूप से यह कार्य करता है और रोगी के जीवन को आगे बढ़ाता है।
🚨 डायलिसिस क्यों किया जाता है? इसके संकेत ?
डॉक्टर डायलिसिस तब शुरू करने की सलाह देते हैं जब:
- किडनी फेल हो चुकी हो या केवल 10-15% ही काम कर रही हो।
- क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) का आखिरी स्टेज (Stage 5) आ गया हो।
- शरीर में तरल पदार्थ और अपशिष्ट जमा हो गया हो।
- उल्टी, सूजन, सांस फूलना, कमजोरी, उलझन, कम यूरिन जैसे लक्षण बढ़ जाएं।
✴ मुख्य कारण:
- क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) – स्टेज 4 या 5
- Acute Kidney Injury (AKI)
- Diabetic Nephropathy
- Hypertensive Nephrosclerosis
- Polycystic Kidney Disease (PKD)
✴ संकेत:
- Creatinine > 8.0 mg/dL (non-diabetic)
- Creatinine > 6.0 mg/dL (diabetic)
- GFR < 15 mL/min
- Fluid overload, Hyperkalemia, Acidosis
🔍 डायलिसिस के प्रकार (Types of Dialysis)
1️⃣ हेमोडायलिसिस (Hemodialysis)
इसमें शरीर का खून एक मशीन में भेजा जाता है। मशीन में एक dialyzer (Artificial Kidney) होता है जो खून को साफ करता है और फिर साफ खून को शरीर में वापस भेज देता है।
यह प्रक्रिया सप्ताह में 2-3 बार, हर बार 4-5 घंटे चलती है। आमतौर पर यह अस्पताल या डायलिसिस सेंटर में होता है। 🩻 उपयोग: स्थायी CKD रोगी
- सप्ताह में 2–3 बार किया जाता है
- प्रत्येक सत्र 4–5 घंटे का होता है
- Requires AV Fistula / Catheter
2️⃣ पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal Dialysis)
इसमें एक catheter (पतली ट्यूब) पेट में डाली जाती है। विशेष द्रव्य (dialysate fluid) पेट की झिल्ली (peritoneum) में डाला जाता है, जो अपशिष्ट पदार्थों को सोख लेता है। फिर वह द्रव्य बाहर निकाल दिया जाता है।
इसे मरीज घर पर भी खुद कर सकता है। यह प्रक्रिया हर दिन 3-4 बार करनी होती है।
- Continuous Ambulatory PD (CAPD)
- Automated PD (APD) – मशीन से रात में
- मरीज स्वयं घर पर कर सकता है
🩺 उपयोग: बच्चे, बुज़ुर्ग, कमजोर रोगी
🧬 डायलिसिस कैसे काम करता है?
डायलिसिस कार्य करता है तीन मुख्य सिद्धांतों पर: |
|
सिद्धांत |
कार्य |
Diffusion |
कणों का उच्च से निम्न
सांद्रता की ओर जाना |
Osmosis |
जल का मूवमेंट |
Ultrafiltration |
अतिरिक्त द्रव निकालना (pressure gradient से) |
⚙️ डायलिसिस की पूरी प्रक्रिया कैसे होती है?
हेमोडायलिसिस में:
- मरीज को एक कुर्सी या बेड पर बैठाया जाता है।
- खून निकालने के लिए हाथ या गर्दन में एक शिरा (fistula या catheter) डाली जाती है।
- मशीन से खून खींचकर उसे डायलाइज़र से पास किया जाता है।
- साफ खून शरीर में वापस पहुंचाया जाता है।
- पूरी प्रक्रिया 3–5 घंटे में पूरी होती है।
पेरिटोनियल डायलिसिस में:
- मरीज के पेट में सर्जरी से एक catheter लगाया जाता है।
- डायलिसेट द्रव्य पेट में डाला जाता है।
- अपशिष्ट पदार्थ उस द्रव्य में मिक्स हो जाता है।
- कुछ घंटों बाद वह द्रव्य बाहर निकाल दिया जाता है।
⚠️ डायलिसिस के खतरे (Complications)
- Hypotension (निम्न रक्तचाप)
- Muscle cramps
- Electrolyte imbalance
- Infection (Catheter site, PD catheter)
- Anemia, Bone disease (CKD-MBD)
💊 डायलिसिस रोगी के लिए जरूरी बातें
क्षेत्र | सलाह |
---|---|
डाइट | Low sodium, low potassium, protein-modified, fluid restriction |
दवाएं | Phosphate binders, Erythropoietin, Vitamin D |
मानसिक स्थिति | डिप्रेशन, Anxiety—काउंसलिंग आवश्यक |
फॉलोअप | नियमित रूप से nephrologist से जाँच |
✅ डायलिसिस कितना सफल है?
यह एक जीवन रक्षक प्रक्रिया है। सही समय पर शुरू किया जाए तो कई सालों तक जीवन बढ़ाया जा सकता है।भारत में हजारों मरीज 10-15 साल या उससे भी ज्यादा समय तक डायलिसिस पर स्वस्थ जीवन जीते हैं।हालांकि यह इलाज नहीं है, यह केवल किडनी फेलियर की स्थिति को मैनेज करता है।
⏳ डायलिसिस के बाद कितने साल तक जिंदा रह सकते हैं?
औसतन मरीज 5 से 10 साल तक डायलिसिस पर जीवित रहते हैं।कुछ मरीज 15-20 साल तक भी जीवित रहते हैं, अगर सही जीवनशैली और डाइट फॉलो करें। युवाओं में सफलता दर अधिक होती है, बुजुर्गों में थोड़ा कम।
🧬 डायलिसिस के बाद की जिंदगी कैसी होती है?
✔️ जीवन के पक्ष:
- काम पर जाना संभव (कुछ सीमाओं के साथ)
- घर पर डायलिसिस करने के विकल्प
- समय पर इलाज और दवाएं लेने से सामान्य जीवन संभव
❌ जीवन की चुनौतियां:
- बार-बार अस्पताल जाना
- कुछ खाद्य पदार्थों पर पाबंदी (कम नमक, कम प्रोटीन आदि)
- थकावट, कमजोरी, कभी-कभी ब्लड प्रेशर की समस्या
- आर्थिक खर्च (अगर सरकारी सुविधा न हो)
🧠 क्या डायलिसिस से किडनी ठीक हो सकती है?
नहीं। डायलिसिस एक symptomatic management है — इलाज नहीं।
कुछ मामलों में (AKI) किडनी रिकवर कर सकती है।
CKD के अंतिम चरण (ESRD) में विकल्प है:
👉 किडनी ट्रांसप्लांट – यही एकमात्र स्थायी इलाज है।
बिलकुल! आप जानना चाहते हैं कि अगर कोई मरीज किडनी ट्रांसप्लांट या डायलिसिस नहीं करवाता है — तो क्या होगा? इस विषय पर मैं आपके लिए एक Medical Research-आधारित, डीटेल हिंदी ब्लॉग पोस्ट तैयार कर रहा हूँ।
⚠️ अगर न करवाएं डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट – एक मेडिकल रिसर्च पर आधारित गंभीर विश्लेषण
लेखक: Shailesh Pradhan
🔬 परिचय: जब किडनी चुप हो जाए (यानि काम करना बंद कर दे )
गुर्दे (Kidneys) हमारे शरीर में दिन-रात काम करने वाली जैविक फ़िल्टर मशीनें हैं। ये खून से विषैले तत्व (Urea, Creatinine), अतिरिक्त पानी, और इलेक्ट्रोलाइट्स को संतुलित करती हैं।
जब किसी व्यक्ति को End-Stage Renal Disease (ESRD) यानी किडनी फेलियर का अंतिम चरण हो जाता है, तब केवल दो विकल्प बचे होते हैं:
- ✔️ Dialysis – रक्त से कचरे को मशीन द्वारा साफ़ करना
- ✔️ Kidney Transplant – नई किडनी प्रत्यारोपण
लेकिन अगर इन दोनों में से कोई विकल्प नहीं चुना जाए, तो यह निर्णय गंभीर और जीवनघातक हो सकता है।
🧪 क्या होता है किडनी फेल होने पर?
किडनी फेल होने का मतलब है:
कार्य | असर |
---|---|
Urea & Creatinine न निकल पाना | शरीर में जहर की तरह फैलते हैं |
Fluid Balance बिगड़ना | सूजन, सांस की तकलीफ |
Electrolyte Imbalance | हार्ट रिदम बिगड़ना, कार्डियक अरेस्ट |
Acid-Base असंतुलन | Metabolic Acidosis |
🧠 क्या होगा अगर Dialysis या Transplant न कराया जाए?
1. Uremia (यूरीमिया): ज़हर जैसा रक्त
जब किडनी अपशिष्ट को बाहर नहीं निकाल पाती, तो खून में विषैले तत्व जमा हो जाते हैं – इसे Uremia कहते हैं।
लक्षण:
- उल्टी, भूख ना लगना
- थकान, कमजोरी
- साँस लेने में तकलीफ
- भ्रम, चेतना की कमी
- अंततः Uremic Coma और मृत्यु
🔬 Journal of the American Society of Nephrology (JASN) के अनुसार, बिना डायलिसिस वाले ESRD मरीजों की औसत जीवन अवधि मात्र 6 महीने से 1 वर्ष है।
2. फेफड़ों में पानी भरना (Pulmonary Edema)
किडनी जब तरल संतुलन नहीं कर पाती, तो शरीर में fluid overload हो जाता है।
यह पानी फेफड़ों में भर जाता है जिससे:
- सांस घुटती है
- ऑक्सीजन की कमी होती है
- ICU में भर्ती तक की जरूरत
3. Hyperkalemia (अत्यधिक पोटैशियम)
किडनी के न चलने से शरीर में पोटैशियम की मात्रा बढ़ जाती है।
5.5 mmol/L से अधिक होते ही:
- दिल की धड़कन अनियमित
- कार्डियक अरेस्ट
- बिना चेतावनी के मृत्यु
🔬 NEJM Study (2021) के अनुसार, Hyperkalemia ESRD में सबसे प्रमुख तत्काल मृत्युकारक है।
4. Acidosis: रक्त का अम्लीकरण
खराब किडनी Hydrogen ions और अम्लीय अपशिष्ट को बाहर नहीं निकाल पाती।
नतीजा:
- साँस तेज़ चलना
- मांसपेशियों में ऐंठन
- हड्डियों का क्षरण
- बेहोशी
5. Neurological Impact
Uremia के कारण तंत्रिका तंत्र पर असर:
- चक्कर
- भ्रम की स्थिति
- दौरे (Seizures)
- Uremic Encephalopathy
📉 जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) बिना इलाज
स्थिति | औसत जीवन अवधि |
---|---|
ESRD + No Dialysis | 6–12 माह |
ESRD + No Treatment + Diabetes | 3–6 माह |
Rapid Acute Kidney Injury | 1–2 सप्ताह में मौत |
👉 जिन मरीजों ने डायलिसिस या ट्रांसप्लांट नहीं कराया, उनमें 1 वर्ष में 85% तक मृत्यु दर देखी गई (Data: Kidney International Reports, 2020)
🔍 बिना इलाज क्यों छोड़ते हैं कुछ लोग?
कारण | विवरण |
---|---|
आर्थिक समस्या | डायलिसिस/ट्रांसप्लांट महंगा होता है |
जानकारी की कमी | ग्रामीण क्षेत्र में विशेष शिक्षा नहीं |
डर व भ्रम | "डायलिसिस से और कमजोरी होती है" जैसी भ्रांतियाँ |
सामाजिक दबाव | अंगदान को लेकर रूढ़िवादी सोच |
❤️ क्या विकल्प हैं इलाज न होने पर?
अगर मरीज डायलिसिस या ट्रांसप्लांट नहीं चाहता तो:
✅ Conservative Management:
- Fluid restriction
- Renal Diet (कम प्रोटीन, कम पोटैशियम)
- Symptom-based Treatment (दर्द, उल्टी आदि के लिए दवा)
- Advance Care Planning
- Palliative Care
लेकिन यह जीवन को बढ़ाता नहीं, केवल थोड़ा "सहज" बनाता है।
🧾 भारत में मुफ्त/सस्ती सुविधाएं
योजना/संस्थान | लाभ |
---|---|
आयुष्मान भारत | मुफ्त डायलिसिस/ट्रांसप्लांट |
राज्य स्वास्थ्य योजना | आंध्र, महाराष्ट्र, यूपी आदि में |
NGO आधारित डायलिसिस सेंटर | शंकरा हॉस्पिटल, श्री सत्य साईं संस्थान |
AIIMS, PGI, CMC वेल्लोर | बहुत कम लागत |
🧠 निष्कर्ष: इलाज न कराना है मौत की ओर बढ़ना
डायलिसिस या ट्रांसप्लांट न करवाना, एक धीमी लेकिन निश्चित मृत्यु की ओर कदम है। मेडिकल रिसर्च और आंकड़ों से स्पष्ट है कि बिना इलाज किडनी फेलियर घातक है।
🙏 लेकिन इलाज है — सरकार, संस्थाएं, समाज — सब मिलकर मदद कर सकते हैं।
➡️ जागरूकता ही बचाव है।
💡 "उपचार न करना एक विकल्प नहीं, आत्महत्या के समान है।"
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📚 स्रोत (References):
- JASN (Journal of American Society of Nephrology)\
- Kidney International Reports
- National Kidney Foundation
- AIIMS Nephrology Protocols
- Lancet Nephrology (2023 Review)
🩺 डायलिसिस के विकल्प क्या हैं?
- किडनी ट्रांसप्लांट: स्थायी समाधान, लेकिन डोनर मिलना मुश्किल और खर्च अधिक।
- रोग प्रबंधन और पेन केयर: अगर मरीज ट्रांसप्लांट या डायलिसिस नहीं चाहता।
📌 निष्कर्ष:
डायलिसिस एक महत्वपूर्ण और जीवन रक्षक तकनीक है जो किडनी फेलियर के मरीजों को नया जीवन देती है। यदि सही समय पर इलाज शुरू हो जाए, तो मरीज एक लंबे समय तक सामान्य जीवन जी सकता है। इसके साथ ही स्वस्थ डाइट, नियमित जांच और डॉक्टर की सलाह मानना जरूरी है।
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