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भविष्य के ईंधन 'हाइड्रोजन' के लिए पानी से ऑक्सीजन बनाने का नया और आसान तरीका: IIT धनबाद के वैज्ञानिकों का कमाल! ढूंढा पानी से हाइड्रोजन अलग करने का सस्ता तरीका 

शोध का सारांश

संपादन: Nidhi Pradhan, Arti Maurya, Kajal Agarwal, Devendra Deo Pathak, Mahendra Yadav

पर प्रकाशन: International Journal of Hydrogen Energy, 2025

• मुख्य खोज: लोहा (Fe) की थोड़ी मात्रा मिलाकर बना CoWO4, जो एक प्रभावी electrocatalyst साबित हुआ है ।पानी के ऑक्सीकरण (Oxygen Evolution Reaction, OER) I

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SUMMARY -

आजकल पूरी दुनिया स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों की तलाश में है। पेट्रोल, डीज़ल और कोयले जैसे पारंपरिक ईंधन का इस्तेमाल करने से हमारी हवा, पानी और धरती प्रदूषित हो रही है, जिससे जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याएँ पैदा हो रही हैं। ऐसे में, हाइड्रोजन एक ऐसे ईंधन के रूप में उभर रहा है जो पर्यावरण के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है। जब हाइड्रोजन जलता है, तो यह केवल पानी छोड़ता है, कोई हानिकारक प्रदूषण नहीं। यही कारण है कि इसे 'भविष्य का ईंधन' कहा जा रहा है, जो जीवाश्म ईंधन का एक बेहतरीन विकल्प बन सकता है।    

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हाइड्रोजन को पानी (H₂O) से अलग किया जा सकता है, क्योंकि पानी में हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O) दोनों होते हैं। इस प्रक्रिया को 'जल विभाजन' (Water Splitting) या 'इलेक्ट्रोलाइसिस' कहते हैं। यह तकनीक कार्बन-न्यूट्रल तरीके से ऊर्जा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण रास्ता मानी जाती है। हाइड्रोजन ऊर्जा के इस बढ़ते महत्व को देखते हुए, 'इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हाइड्रोजन एनर्जी' जैसी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिकाएँ इस क्षेत्र में हो रहे गहन शोध को प्रकाशित करती हैं। 

यह पत्रिका हाइड्रोजन उत्पादन और भंडारण सहित हाइड्रोजन ऊर्जा के सभी पहलुओं को कवर करती है और साप्ताहिक रूप से प्रकाशित होती है, जिसका 2023 में प्रभाव कारक (Impact Factor) 8.1 रहा है । 

इस तरह की उच्च गुणवत्ता वाली और लगातार प्रकाशित होने वाली शोध सामग्री यह दर्शाती है कि स्वच्छ ऊर्जा के रूप में हाइड्रोजन को विकसित करने के लिए वैश्विक स्तर पर कितना बड़ा और निरंतर वैज्ञानिक प्रयास किया जा रहा है। यह प्रयास वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।   


पानी से ऑक्सीजन बनाना: क्या है यह प्रक्रिया और क्यों है मुश्किल?

पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ने की प्रक्रिया में, ऑक्सीजन को पानी से अलग करना एक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण कदम है। इस प्रक्रिया को 'जल ऑक्सीकरण' (Water Oxidation) या 'ऑक्सीजन इवोल्यूशन रिएक्शन' (OER) कहते हैं। 

सरल शब्दों में ऑक्सीकरण का मतलब है किसी पदार्थ में ऑक्सीजन या कोई ऐसा तत्व जुड़ना जो इलेक्ट्रॉन खींचता हो, या उसमें से हाइड्रोजन या ऐसा तत्व निकलना जो इलेक्ट्रॉन देता हो। जैसे, लोहे में जंग लगना भी एक तरह का ऑक्सीकरण है, जहाँ लोहा ऑक्सीजन से जुड़ता है ।   

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'इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट' क्या होता है – एक मददगार जो काम आसान करे

जल ऑक्सीकरण जैसी रासायनिक प्रक्रियाओं को तेज़ और आसान बनाने के लिए कुछ खास पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें 'इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट' (Electrocatalyst) या 'उत्प्रेरक' (Catalyst) कहते हैं। उत्प्रेरक ऐसे 'दोस्त' होते हैं जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया की गति को बढ़ा देते हैं, लेकिन खुद उस अभिक्रिया में बदलते नहीं हैं। वे बस काम को तेज़ी से होने में मदद करते हैं और उनकी बहुत कम मात्रा ही पर्याप्त होती है । इलेक्ट्रोकैटेलिस्ट विशेष रूप से विद्युत-रासायनिक (इलेक्ट्रोकेमिकल) प्रतिक्रियाओं में मदद करते हैं, जिससे बिजली की मदद से रासायनिक परिवर्तन संभव हो पाता है ।   


'क्षारीय माध्यम' का मतलब क्या है

यह प्रक्रिया अक्सर एक खास तरह के घोल में की जाती है जिसे 'क्षारीय माध्यम' (Alkaline Medium) कहते हैं। क्षारीय माध्यम का मतलब है कि पानी में कुछ ऐसा मिलाया गया है जो उसे 'क्षार' (Base) बना देता है, जैसे साबुन का पानी होता है। यह अम्लीय (Acidic) माध्यम के ठीक उल्टा होता है। धातुओं के ऑक्साइड, जैसे सोडियम ऑक्साइड, आमतौर पर क्षारीय होते हैं और जल में घुलनशील होते हैं ।   


यह प्रक्रिया क्यों मुश्किल है?

पानी से ऑक्सीजन निकालने की प्रक्रिया (OER) बहुत मुश्किल और ऊर्जा-खर्चीली होती है। इसमें बहुत ज़्यादा बिजली लगती है, जिससे हाइड्रोजन उत्पादन महंगा हो जाता है। मौजूदा कैटेलिस्ट के साथ 'उच्च ओवरपोटेंशियल' (High Overpotential) और 'स्थिरता की चुनौतियाँ' (Stability Challenges) इस प्रक्रिया के विकास को सीमित करती हैं । यह हाइड्रोजन के बड़े पैमाने पर, लागत प्रभावी उत्पादन को रोकने वाली एक मूलभूत बाधा है। वैज्ञानिकों को ऐसे नए कैटेलिस्ट खोजना बहुत ज़रूरी है जो इस काम को कम ऊर्जा में और तेज़ी से कर सकें।   

दिलचस्प बात यह है कि कैटेलिस्ट की रासायनिक संरचना के अलावा, उसकी भौतिक संरचना या आकार (जैसे अनाकार, अर्ध-अनाकार, या क्रिस्टलीय चरण) भी उसकी कार्यक्षमता और स्थिरता पर बहुत प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए, अर्ध-अनाकार कोबाल्ट टंगस्टेट नैनोमैटिरियल्स में असाधारण रूप से बड़ा सतह क्षेत्र होता है और वे बेहतर गतिविधि व उत्कृष्ट स्थिरता दिखाते हैं । यह दर्शाता है कि वैज्ञानिक केवल रासायनिक संघटन को ही नहीं, बल्कि सामग्री की आंतरिक व्यवस्था को भी नियंत्रित करके उसके गुणों को बेहतर बना सकते हैं।   

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IIT धनबाद के प्रोफेसर की नई खोज: आयरन-डोप्ड कोबाल्ट टंगस्टेट

IIT धनबाद के वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को हल करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। उन्होंने एक नया और खास पदार्थ विकसित किया है, जिसका नाम है 'आयरन-डोप्ड कोबाल्ट टंगस्टेट' (Iron-doped cobalt tungstate)। यह पदार्थ कोबाल्ट टंगस्टेट (CoWO₄) में बहुत थोड़ी मात्रा में लोहा (Iron) और मैंगनीज (Manganese) मिलाकर बनाया गया है। 'डोप्ड' का मतलब है कि मुख्य पदार्थ में एक और पदार्थ मिलाया गया है ताकि उसके गुणों को सुधारा जा सके। इस पदार्थ को 'हाइड्रोथर्मल' (Hydrothermal) तरीके से बनाया गया है, जो एक ऐसी विधि है जिसमें उच्च तापमान और दबाव पर पानी का उपयोग करके सामग्री को तैयार किया जाता है । सभी संश्लेषित पदार्थ वुल्फ्रामाइट-प्रकार के मोनोक्लिनिक क्रिस्टल सिस्टम में क्रिस्टलीकृत होते हैं ।   


यह 'नया' और 'अनोखा' क्यों है

वैज्ञानिकों ने पाया कि कोबाल्ट टंगस्टेट में लोहा और मैंगनीज मिलाने से इसके गुणों में ज़बरदस्त सुधार आता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोहा और मैंगनीज मिलाने से इस पदार्थ का 'ऑप्टिकल बैंड गैप' (Optical Band Gap) 2.60 eV से घटकर 2.04 eV तक हो जाता है । आसान भाषा में, ऑप्टिकल बैंड गैप यह बताता है कि कोई पदार्थ कितनी आसानी से सूरज की रोशनी को सोखकर उसे ऊर्जा में बदल सकता है। इस पदार्थ का बैंड गैप कम होने का मतलब है कि यह सूरज की ज़्यादा रोशनी को ऊर्जा में बदल सकता है, जो पानी से ऑक्सीजन निकालने के काम आती है।

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यह खोज इसलिए भी अनोखी है क्योंकि लोहे को कोबाल्ट के साथ डोप करने से बैंड गैप में इतनी कमी आती है जो अब तक किसी भी टंगस्टेट में नहीं देखी गई थी । यह एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि है। इस असाधारण कमी का मुख्य कारण कोबाल्ट और लोहे के परमाणुओं के '3d ऑर्बिटल्स' का आपस में मिलना है। यह दर्शाता है कि वैज्ञानिकों ने केवल एक छोटा-मोटा सुधार नहीं किया है, बल्कि परमाणु स्तर पर एक मौलिक वैज्ञानिक कारण की पहचान की है, जहाँ विशिष्ट इलेक्ट्रॉन ऑर्बिटल्स (3d ऑर्बिटल्स) की परस्पर क्रिया से प्रकाश अवशोषण में वांछित वृद्धि होती है। यह एक आकस्मिक खोज नहीं, बल्कि परिष्कृत सामग्री डिज़ाइन का परिणाम है।   


यह नया कैटेलिस्ट कैसे काम करता है और इसके क्या फायदे हैं?

यह नया कैटेलिस्ट (आयरन-डोप्ड कोबाल्ट टंगस्टेट) पानी से ऑक्सीजन निकालने के काम को कई तरह से बेहतर बनाता है, जिससे हाइड्रोजन उत्पादन की प्रक्रिया अधिक कुशल और लागत प्रभावी हो जाती है।

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कम ऊर्जा में ज्यादा ऑक्सीजन: इसकी खासियतें

ज़्यादा रोशनी सोखना: जैसा कि बताया गया, लोहे और मैंगनीज के डोपिंग से इस कैटेलिस्ट का ऑप्टिकल बैंड गैप कम हो जाता है, जिससे यह सूरज की ज़्यादा तरंग दैर्ध्य वाली रोशनी को सोख पाता है। यह इसे एक प्रभावी 'फोटोइलेक्ट्रोकैटेलिस्ट' बनाता है, यानी यह बिजली और रोशनी दोनों का इस्तेमाल करके काम करता है, जिससे ऊर्जा की बचत होती है ।   


  • कम बिजली खर्च: यह ऑक्सीजन बनाने के लिए बहुत कम 'अतिरिक्त ऊर्जा' (ओवरपोटेंशियल) लेता है। उदाहरण के लिए, नमूना C5, जिसमें मैंगनीज और लोहा दोनों मिले हुए हैं, को 5 mA cm⁻² की करंट घनत्व प्राप्त करने के लिए केवल 410 mV और 10 mA cm⁻² की मानक करंट घनत्व तक पहुँचने के लिए केवल 460 mV के बहुत कम ओवरपोटेंशियल की आवश्यकता होती है। यह अन्य संश्लेषित नमूनों की तुलना में सबसे कम है । कम ओवरपोटेंशियल का सीधा मतलब है कि अभिक्रिया के लिए कम विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे हाइड्रोजन उत्पादन की लागत कम हो जाती है।   
  • तेज़ काम: इस कैटेलिस्ट ने सबसे कम टेफल स्लोप (83 mV dec⁻¹) भी दिखाया । टेफल स्लोप एक वैज्ञानिक माप है जो कैटेलिस्ट की कार्य करने की गति को दर्शाता है। कम टेफल स्लोप का मतलब है कि इलेक्ट्रॉन का स्थानांतरण बहुत तेज़ी से होता है, जिससे रासायनिक प्रक्रिया अधिक गति से होती है और कम समय में ज़्यादा हाइड्रोजन बनाई जा सकती है।   
  • चार्ज सेपरेशन: लोहे और मैंगनीज के को-डोपिंग से सामग्री के भीतर चार्ज सेपरेशन (बिजली के कणों - इलेक्ट्रॉन और होल - का अलग होना) बढ़ता है । यह फोटोइलेक्ट्रोकैटेलिसिस के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह फोटो-जनित इलेक्ट्रॉन-होल युग्मों के पुनर्संयोजन को रोकता है, जिससे वे ऑक्सीजन बनाने की उत्प्रेरक प्रतिक्रियाओं के लिए उपलब्ध रहते हैं।   

ये सभी खूबियाँ मिलकर इस नए कैटेलिस्ट को हाइड्रोजन को बड़े पैमाने पर और सस्ते तरीके से बनाने में मदद करने की क्षमता प्रदान करती हैं। यह स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जो पर्यावरण को बचाने और जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता कम करने में सहायक होगा।


नीचे दी गई तालिका नए कैटेलिस्ट की कार्यक्षमता को सामान्य कोबाल्ट टंगस्टेट की तुलना में दर्शाती है, जिससे इसकी बेहतर क्षमता को आसानी से समझा जा सकता है:


कैटेलिस्ट का प्रकार (Type of Catalyst) ऑक्सीजन बनाने के लिए ज़रूरी 'अतिरिक्त ऊर्जा' (ओवरपोटेंशियल) (10 mA cm⁻² पर) काम करने की गति (टेफल स्लोप) सूरज की रोशनी सोखने की क्षमता (बैंड गैप)
सामान्य कोबाल्ट टंगस्टेट (CoWO₄) लगभग 810 mV जानकारी उपलब्ध नहीं 2.20 - 2.68 eV
आयरन और मैंगनीज मिला हुआ कोबाल्ट टंगस्टेट (Co₁–(x+y)FexMnyWO₄) (नमूना C5) केवल 460 mV 83 mV dec⁻¹ (बहुत तेज़) 2.04 - 2.21 eV


इस तालिका से स्पष्ट है कि नया कैटेलिस्ट ऑक्सीजन उत्पादन के लिए आवश्यक ऊर्जा को काफी कम कर देता है और प्रतिक्रिया की गति को बढ़ाता है, जिससे हाइड्रोजन उत्पादन की प्रक्रिया अधिक कुशल और किफायती हो जाती है।


यह शोध कहाँ हुआ और किसने किया?

यह महत्वपूर्ण शोध भारत के एक बहुत ही प्रतिष्ठित और पुराने संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भारतीय खनि विद्यापीठ), धनबाद (IIT(ISM) Dhanbad) में किया गया है। यह संस्थान इंजीनियरिंग और विज्ञान के क्षेत्र में उच्च शिक्षा और अनुसंधान के लिए जाना जाता है, जिसकी स्थापना 1926 में हुई थी । इसके एप्लाइड केमिस्ट्री विभाग में हाइड्रोजन ऊर्जा और इलेक्ट्रोकैटेलिसिस जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में गहन शोध कार्य होता है ।   


शोधकर्ताओं का परिचय

इस शोध को कई समर्पित वैज्ञानिकों ने मिलकर अंजाम दिया है, जो IIT(ISM) धनबाद के एप्लाइड केमिस्ट्री विभाग से जुड़े हुए हैं। इस टीम में शामिल प्रमुख शोधकर्ता हैं:


डॉ. महेंद्र यादव: वे IIT(ISM) धनबाद में रसायन विज्ञान और रासायनिक जीव विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं। उनकी शोध रुचियों में इलेक्ट्रोकैटेलिसिस, हाइड्रोजन ऊर्जा और संक्षारण विज्ञान शामिल हैं ।   


डॉ. देवेंद्र देव पाठक: वे IIT(ISM) धनबाद में एप्लाइड केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष हैं। उनके शोध क्षेत्रों में सिंथेटिक अकार्बनिक/ऑर्गेनोमेटेलिक रसायन विज्ञान, चिरल ट्रांज़िशन मेटल कॉम्प्लेक्स, नैनोमैटिरियल्स और नैनोटेक्नोलॉजी शामिल हैं ।   

आरती मौर्या: वे IIT(ISM) धनबाद के एप्लाइड केमिस्ट्री विभाग से जुड़ी हुई हैं और डॉ. महेंद्र यादव और निधि प्रधान के साथ मिलकर इलेक्ट्रोकैटेलिसिस पर कई अन्य शोध पत्रों की सह-लेखिका रही हैं, जिनमें क्षारीय माध्यम में ऑक्सीजन इवोल्यूशन रिएक्शन के लिए विभिन्न कैटेलिस्ट पर काम शामिल है ।   

निधि प्रधान: वे भी आरती मौर्या और डॉ. महेंद्र यादव के साथ मिलकर इलेक्ट्रोकैटेलिसिस से संबंधित अन्य शोध पत्रों में सह-लेखिका के रूप में सूचीबद्ध हैं, जो IIT(ISM) धनबाद से उनके जुड़ाव और इस क्षेत्र में उनके योगदान को दर्शाता है ।   

काजल अग्रवाल: वे भी IIT धनबाद से जुड़ी हुई हैं और उनकी शोध रुचि सोडियम-आधारित सॉलिड-स्टेट बैटरी तकनीक में है, जो सामग्री विज्ञान और ऊर्जा अनुसंधान से संबंधित है ।   

यह दर्शाता है कि यह एक खंडित प्रयास नहीं है, बल्कि एक मजबूत, सुसंगत और विशिष्ट शोध समूह का केंद्रित कार्यक्रम है, जो एक प्रमुख संस्थान के भीतर काम कर रहा है। उनकी स्थापित विशेषज्ञता परिणामों की विश्वसनीयता और गहराई को काफी बढ़ाती है।


'इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हाइड्रोजन एनर्जी' – इस पत्रिका का महत्व

यह शोध 'इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हाइड्रोजन एनर्जी' नामक एक बहुत ही प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है । यह पत्रिका हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ शोधों को प्रकाशित करती है। यह एक 'पीयर-रिव्यूड' (Peer-Reviewed) पत्रिका है, जिसका अर्थ है कि इस शोध कार्य को क्षेत्र के अन्य प्रमुख विशेषज्ञों द्वारा कठोरता से मूल्यांकन और मान्य किया गया है। 2023 में इसका प्रभाव कारक (Impact Factor) 8.1 था, जो यह दर्शाता है कि यह पत्रिका अत्यधिक प्रभावशाली और अक्सर उद्धृत किए जाने वाले शोध को प्रकाशित करती है । किसी भी शोध का इस तरह की पत्रिका में प्रकाशित होना यह दर्शाता है कि उसे दुनिया भर के अन्य वैज्ञानिकों ने परखा है और उसे बहुत महत्वपूर्ण माना है। यह एक वैज्ञानिक रूप से सुदृढ़ और विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त योगदान है।   


निष्कर्ष और भविष्य की दिशा

IIT धनबाद के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह 'आयरन-डोप्ड कोबाल्ट टंगस्टेट' कैटेलिस्ट हाइड्रोजन उत्पादन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति है। इस नए कैटेलिस्ट की क्षमता, जैसे कि कम ओवरपोटेंशियल पर उच्च गतिविधि और सूरज की रोशनी को बेहतर ढंग से सोखने की क्षमता, इसे स्वच्छ और स्थायी हाइड्रोजन ऊर्जा को बड़े पैमाने पर और किफ़ायती तरीके से बनाने के करीब लाती है। यह हमें प्रदूषण कम करने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता कम करने के लिए एक टिकाऊ, स्वच्छ ऊर्जा भविष्य की ओर बढ़ने में मदद करेगा।


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